बाट की पहचान कर ले।
हरिवंश राय बच्चन की ये पंक्ति हर व्यक्ति को अपना लक्ष्य निर्धारित करने से पहले स्वयं से कहनी चाहिए। लक्ष्य-निर्धारण जीवन की उस आधारशिला के सामान महत्त्वपूर्ण होता है जिस पर जीवन की सफलता का भवन निर्मित होता हैं। सपनो की झिलमिल दुनिया तो हर आखों में बसती है किंतु हर स्वप्न लक्ष्य नहीं बनाया जा सकता। अपनी सामर्थ्य, परिस्थितियाँ और रूचि को दृष्टिगत रखकर ही लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए। जिनके लक्ष्य नहीं होता उनका जीवन उस भटकती हुई नौका के सामान डगमगाता रहता है जो लहरों के हिलकोले खाती रहती है किंतु कभी किनारे तक नहीं पहुच पाती। किशोरावस्था में पदार्पण करते ही मैंने अपने जीवन का एक लक्ष्य चुना लिया था और वह था एक सैनिक बनना।
मेरे दादा जी फौज में थे। जब वे हम बच्चों को 1971 के भारत-पाक युद्ध के किस्से सुनाते थे तो मैं मग्न होकर सुनता था। मैं भी मन मैं ही कल्पना करता था की मैं एक सैनिक हूँ और युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ा रहा हूँ। दादा जी की जोखिम, रोमांच और कष्टों से भरी गाथाओं में अनोखा आकर्षण था। मेरी आँखों के सामने वे सब दृश्य साकारहो उठते थे की कैसे दादा जी अपने साथियों के साथ गोलियों की बौछारों के बिच आगे बढ़ते जा रहे थे। उनकी आँखों के सामने उनके साथी दुश्मनों की गोली के शिकार हुए। उनके सबसे प्रिय मित्र ने उनकी बाँहों में दम तोड़ा किंतु मरने से पहले आठ-दस शत्रुओं को अपनी मशीनगन से भूल डाला था। घबराकर शत्रु पीछे हटने पर मजबूर हो गए थे। दादा जी का मानना था की उस मित्र के बदौलत ही वो बच पाए थे। यधपि इस युद्ध में मेरे दादाजी बहुत घायल हुए थे, उन्हें 'विशिष्ट सेवा' मेडल दिया गया।
मैं दादा जी से जान चूका था की एक सैनिक बनना आसान बात नही हैं। शारीरिक रूप से चुस्त-दरुस्त स्वस्थ होने के साथ साहस, सहनशील, अनुशासनप्रियता, कर्तव्य परायणता जैसे गुणों का होना भी आवश्यक है। देशभक्ति तो हमारे परिवार में कूट-कूट कर भरी है। इन सब गुणों को विकसित करना ही अब मेरे जीवन का लक्ष्य बन चूका है। में प्रातः जल्दी उठता हूँ -व्यायाम और योगाभ्यास करता हूँ। छुट्टी के दिन पिताजी के साथ लंबी सैर में जाता हु। संतुलित और पौस्टिक भोजन लेता हूँ।
पर्वतारोहन और कैंपिंग पर भी जाता हूँ। घर के सुख-सुविधा के जीवन से दूर कई-कई दिन पहाड़ो-जंगलों में रहने का रोमांच मैं अभी से महसूस करता हूँ। वहाँ हम स्वयं खाना बनाते हैं- पानी भरकर लाते हैं। मीलों ऊबर-खाबर रास्तों पर चलना, चट्टानों और खाइयों को रस्सियों के सहारें पर करने का जोखिम भी मुझे तो आनददायक प्रतिक होता है। मैंने अभी से निश्चय कर लिया है की कॉलेज में मैं एन.सी.सी(NCC) अवश्य लूंगा। अपनी और से एक जाँबाज सैनिक बनने की मैं पूरी तैयारी कर रहा हूँ। अपने परिवार से मुझे पूरा सहयोग मिलता है। मुझे पूर्ण विश्वास है की मैं भी अपने दादा जी जैसा एक वीर सैनिक बनकर देश की सेवा करूँगा।
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