चन्द्रशेखर आजाद जी की जीवन परिचय
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था इनका जन्म का नाम चंद्रशेखर तिवारी था | इनके पिता का नाम सीताराम तिवारी था | जो अलीराजपुर रियासत में नोकरी करते थे | इनकी माता का नाम जगरानी देवी था | बाद में आजादी के आन्दोलन से प्रभावित होकर चन्द्रशेखर तिवारी ने अपने आप को आजाद घोषित कर दिया | जिससे इनका नाम चंद्रशेखर आजाद हो गया | इनके और भी कई उपनाम थे जेसे :- पंडित जी, आजाद, बलराज, क्विक स्लिवर, ( Quick Sliver ) चन्द्रशेखर आजाद का जन्म आदिवासी बहुल इलाके में हुआ था |
इस कारण इन्होने आदिवासी और भील समुदाय के लोगो के साथ बहुत धनुष बाण का अभियाष किया | इसलिए निशानेबाजी उन्होंने बचपन में ही सीख ली थी | गांधीजी दवारा असहयोग आन्दोलन आचानक बंद कर देने के कारणों उन की सोच में परिवर्तन आया | और वे आहिंसत्मक उपायों को छोड़ कर सशस्त्र क्रांति की और मुड गए | चंद्रशेखर आजाद भारतीय सवतंत्रता संग्राम के सवतंत्रता सेनानी थे | पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, सरदार भगत सिह, राजगुरू, सुखदेव, अशफाक़उल्ला खां प्रमुख और निकटतम साथी थे | आगे चलकर चंद्रशेखर आजाद क्रन्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रीय सदस्य बन गए | इसी संस्था के माध्यम से उन्होंने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया और फरार हो गए |
इसके बाद सन 1927 में बिस्मिल के साथ चार प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रन्तिकारी पार्टियों को मिलाकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया | तथा भगत सिह के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मोत का बदला लाहोर में सांडर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुच कर असेम्बली बम कांड को अंजाम दिया | बाद में इन दोनों कांड के लिए अंग्रेजो ने भगत सिह, सुखदेव, राजगुरू, को गिरफ्तार कर फांसी की सजा सुनाई गई | और तीनो ने अपनी फासी की सजा की अपील करने से भी इंकार कर दिया | लेकिन जिन क्रांतिकरीयो ने अपील की थी उसको भी लन्दन की काउन्सिल ने बिना सुनवाई के ख़ारिज कर दिया | आजाद ने अपने साथियों को छुड़ाने के लिए बहुत प्रयास किये | इसके लिए वे उत्तर प्रदेश में हरदोई जेल में गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले उन से परामर्श कर वे जवाहर लाल नेहरू से मिलने इलाहाबाद में उनके आवास आनंद भवन पहुचे |
उन से आग्रह किया की वे गांधीजी के माध्यम से लार्ड डार्विन पे तीनो की फासी की सजा को उम्र कैद में बदलने पर जोर डाले | जब नेहरू जी ने उनकी बात नहीं मानी तो उनमे काफी बस हुई और नेहरू जी ने क्रोध में आकर आजाद को तत्काल वहा से चले जाने को कहा | और आजाद अल्फर्ड पार्क की और चल पड़े और वहा वो अपने मित्र सुखदेव राज से चर्चा कर रहे थे तभी CID का SSP नाट बाबर वहा आ पहुचा |
उसके साथ भारी संख्या में कर्नल गंज थाने की पुलिस भी आ गई | दोनों और से भयंकर गोली बरी हुई आजाद ने अंग्रेजो को डट कर सामना किया | लेकिन जब उनके पास एक गोली बची तो उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा “अंग्रेजो दवारा कभी ना पकडे जाने और ना मारे जाने” का पालन करते हुए अंतिम गोली स्वयं को मर ली और वीरगति को प्राप्त हुए | ये दुखद घटना 27 फरवरी 1931 को घटित हुई और इतिहास में अमर हो गई | हिंदुस्तान की आजादी का उनका सपना उनकी शाहदत 16 वर्ष बाद 15 अगस्त 1947 को पूरा हुआ | किन्तु इस पल को वो अपने जीवन काल में देख न सके |