सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ [Suryakant Tripathi 'Nirala']

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जीवन परिचय

जन्म:- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म
बंगाल में मेदनीपुर जिले के महिषादल गाँव में हुआ था | उनका पैतृक गाँव गढकोला
(उन्नाव, उ.प्र.) है | उनके बचपन का नाम सूर्य कुमार था | बहुत छोटी आयु में ही
उनकी माता का निधन हो गया था | निराला की विविध स्कूली शिक्षा केवल नावीं कक्षा तक
ही हुई | पत्नी की प्रेरणा से निराला की संगीत और साहित्य में रूचि पैदा हुई | सन्
1918 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया और उनके बाद उनके पिता, चाचा, चचेरे भाई
एक-एक कर सब चल बसे | अंत में उनके पुत्री सरोज की मृत्यु  ने उनके भीतर के झकझोर दिया | अपने जीवन में
निराला जी नें मृत्यु का जैसा साक्षात्कार किया था | उसकी अभिव्यक्ति उनकी अनेक
कवितायों में दिखाई देती है |



सन् 1916 में उन्होंने शुप्रशिद्ध कविता जुही की कली लिखी जिससे बाद में उन्हे काफी प्रशिद्धि मिली और वे मुक्त छंद के प्रवतर्क भी माने गए | सन् 1922 में निराला रामकृष्ण मिशन व्दारा प्रकाशित पत्रिका समन्वय के संपादक से जुङे | सन् 1923-24 में वे मतवाला के संपादक मंडल में शामिल हो गए | वे जिवनभर पारिवारिक और आर्थिक कष्टों से संघर्ष करते रहे | अपने स्वाभिमानी स्वभाव के काराण निराला कहीं भी टिक्कर काम नहीं का पाए | अंत में
इलाहाबाद आकर रहे वहीं उनका देहांत हुआ |


साहित्यक विशेषताएँ :- छायावाद और हिन्दी की स्वाछंदतावादी कविता के प्रमुख आधार स्तम्भ निराला का काव्य-संसार बहुत व्यापक है | उनमे भारतीय इतिहास, परम्परा और दर्शन का व्यापक बोध है और समकालीन जीवन के यथार्त के विभिन्न पक्षो का चित्रण भी | विचारो और भावों की जैसे विविधता, व्यापकता और घहराई निराला की कविताओ में मिलती है वैसे बहुत कम कविओ में है | उन्होंने भारतीय प्रकृति और संस्कृति के विविध रूपों का गंभीर चित्रण अपने काव्य में किया है | भारतीय किसान जीवन से उनका लगाव उनकी अनेक कविताओ में वाक्यात हुआ है |

यधपि निराला मुक्त्त छंद के प्रवर्तक कवी माने जाते हैं तथापि उन्होंने विभिन्न छंदों में भी कविताये लिखी हैं | उनके काव्य-संसार में काव्य-रुप की विविधता भी देखने को मिली है एक ओर जहां उन्होंने राम की शक्ति पूजा और तुलसीदास जैसे प्रबंधात्मक कविताएँ लिखी तो वहीं दूसरी ओर प्रगीतो वयंग्य के रूप उनकी कविताओं में जगह-जगह  पर प्रकट हुई हैं |


भाषा शैली:- निराला की कव्याभाषा  के अनेक रूप और स्तर हैं | राम की शक्ति-पूजा और तुलसीदास में तत्समप्रव्धान  पदावली का
प्रयोग किया है तो भिक्षुक जैसी कविता में बोलचाल की भाषा का सृजनात्मक उपयोग | भाषा  का कसाव, शब्दों की मितव्यता और अर्थ की प्रधानता उनकी कव्य-भाषा प्रमुख विशेषताएँ हैं |
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